टाइम ट्रेवल करना है तो कुंडली देखें

भविष्य में क्या होने वाला है इसे कुंडली के माध्यम से पहले ही देखा जा सकता है हो सकता है कि आम लोगों में अंदाज़ में देखने को तो कुंडली महज एक कुंडली होती होगी . परन्तु कुंडली के एक एक भाव में इंसान के जिन्दगी के वो गहरे राज़ छुपे होते है , जिसे वो भी नहीं जानता होता . यह कहना गलत नहीं होगा कि कुंडली व्यक्ति के अतीत का स्मरण करवाती है और वर्तमान की स्थिति बताती है . लेकिन कुंडली भविष्य को भी दिखलाती है . अगर कुंडली को ‘ टाइम ट्रेवल’ कहा जाए तो गलत नहीं होगा . अर्थात इंसान कुंडली से भविष्य की दीवारें लांघ कर वो सब पहले ही देख सकता है , जो उसकी जिन्दगी में आने वाले सालों में होने वाला है . भूतकाल में जो गलती हुई उसे फिर से होने से रोका जा सकता है , उसे सुधारा जा सकता है .

कुंडली में बारह भाव होते हैं जिनकी मदद से व्यक्ति के संपूर्ण जीवन का पता लगाया जा सकता है। कुंडली का हर भाग अलग अलग बातों का प्रतिनिधित्व करता है . भाव में जो राशि बैठी होती है उस राशि का स्वामी ग्रह उस भाव का मालिक या अधिपति होता है। प्रत्येक भाव का एक विशेष अर्थ है। इन भावों में स्थित राशि, नक्षत्र तथा ग्रहों का अध्ययन करने के बाद ही व्यक्ति का राशिफल पता जाता है। 12 भावों की स्थिति से व्यक्ति के भूत, वर्तमान और भविष्य सभी के बारे में पता लगाया जाता है। यह व्यक्ति के जीवन के संपूर्ण क्षेत्रों की व्याख्या करते हैं। कुंडली से व्यक्ति के भूत, वर्तमान, और भविष्य की स्थिति और घटनाक्रमों के बारे में जानकारी मिलती है. कुंडली के इन 12 भावों से जिंदगी के राज खुलते हैं.कुंडली में मौजूद बारह भाव जन्म से लेकर मृत्यु और मृत्यु से लेकर मोक्ष तक की जानकारी देते हैं.कुंडली का महत्व इसीलिए ज्यादा होता है क्योंकि यह मनुष्य के भविष्य के बारे में बताती है.इससे आप अपने ग्रहों की दशा के बारे में जान सकते हैं. किस ग्रह का असर आपके जीवन पर कब पड़ रहा है इसके बार में भी जान सकते हैं.

1. कुंडली का पहला भाव या पहला घर

  • कुंडली का पहला घर या भाव व्यक्ति का शरीर या लग्न होता है. पहले घर या भाव से व्यक्ति के शरीर, आकृति, यश, सम्मान, गुण, बुद्धि, सुख, दुख, बल, प्रारब्ध, स्वभाव, मस्तिष्क, आयु, निद्रा, पत्नी की सेहत, व्यक्तित्व, धैर्य, रोग प्रतिरोधक क्षमता आदि का विचार किया जाता है.

2. कुंडली का दूसरा भाव या दूसरा घर

  • कुंडली का दूसरा भाव या दूसरा घर धन भाव होता है. इससे व्यक्ति के परिवार, पारिवारिक सुख, घर, विवेक, भोजन, विद्या, धन, संपत्ति, सोना, दाहिनी आंख, सत्य, स्वाद, यात्रा आदि के संबंध में विचार किया जाता है.

3. कुंडली का तीसरा भाव या तीसरा घर

  • कुंडली का तीसरा घर या भाव व्यक्ति के पराक्रम से जुड़ा होता है. तीसरे घर से व्यक्ति के हाथ, कान, मित्रता, रहन-सहन, माता, पिता, मरण, उद्योग, महत्वाकांक्षा, नौकर, सुख, दुख, अचल संपत्ति, कर्म, श्रम आदि का विचार होता है.

4. कुंडली का चौथा भाव या चौथा घर

  • किसी भी व्यक्ति की कुंडली का चौथा घर मातृ भाव का होता है. इससे व्यक्ति की माता, साहस, उन्नति, कीर्ति, वाहन सुख, प्राथमिक शिक्षा, जमीन जायदाद, खेती, पशुपालन, चरित्र, हृदय, फेफड़े, सांस लेने वाले अंगों आदि के बारे में विचार होता है.

5. कुंडली का पांचवां भाव या पांचवां घर

  • कुंडली का पांचवा घर या भाव शिक्षा और संतान से संबंधित होता है. इस घर का अध्ययन करके आप व्यक्ति के विवेक, शिक्षा, योग, राजनीति, प्रतिष्ठा, लेखन, साहित्य, रोग, भाग्य, ज्ञान, गर्भ धारण, अमाशय, उदर आदि के बारे में जान सकते हैं.

6. कुंडली का छठा भाव या छठा घर

  • कुंडली का छठा घर रोग, कर्ज और शत्रु से जुड़ा है. इस घर से व्यक्ति के रोग, हानि, आर्थिक पक्ष, मामा पक्ष का हाल, कर्ज, दुर्घटना, चिंता, शंका, वाद-विवाद, पाचन क्रिया, चोट, घाव आदि के बारे में जाना जा सकता है.

7. कुंडली का सातवां भाव या सातवां घर

  • जन्म कुंडली का सातवां घर स्त्री और विवाह का होता है. इस घर से आप पत्नी के रंग-रूप, गुण, स्वभाव, विवाह, बिजनेस, लाभ, हानि, कोर्ट, कचहरी, सेहत, दांपत्य जीवन, प्रेम, पत्नी की आयु, सुख आदि के बारे में जान सकते हैं.

8. कुंडली का आठवां भाव या आठवां घर

  • कुंडली का आठवां घर या भाव का व्यक्ति के आयु से संबंध होता है. इस घर से आप अचानक धन लाभ, शत्रु, गुप्त रोग, कर्ज संकट, मृत्यु, आपदा, ससुराल पक्ष से लाभ, यात्रा कष्ट आदि के बारे में विचार किया जाता है.

9. कुंडली का नौवां भाव या नौवां घर

  • जन्म कुंडली का नौवां घर भाग्य का होता है. इस घर से व्यक्ति के भाग्य, पर्यटन, संपन्नता, पौत्र सुख, तीर्थ यात्रा, आदर्श पुत्र, आदर्श पिता, धर्म, वायु यात्रा, जल यात्रा, शासन आदि के बारे में जानकारी हासिल की जा सकती है.

10. कुंडली का दसवां भाव या दसवां घर

  • कुंडल का दसवां घर कर्म का है. इससे पिता का कार्य, गुण, स्वभाव, आयु, नौकरी, बिजनेस, राजयोग, उच्च पद, धन, वैभव, पिता का सुख, यश, रोजगार, उन्नति, पतन, पद लाभ आदि का विचार किया जाता है.

11. कुंडली का ग्यारहवां भाव या ग्यारहवां घर

  • कुंडली का ग्यारहवां घर आय का है. इस घर से आप इनकम, धन लाभ, भाई, वाहन लाभ, मित्र सुख, प्रॉपर्टी, अचानक धन लाभ, आभूषण, कर्मकांड, पूजा-पाठ, मेल-मिलाप आदि के बारे में जान सकते हैं.

12. कुंडली का बारहवां भाव या बारहवां घर

  • कुंडली का बारहवां घर व्यय यानि खर्च का होता है. इस भाव से आप व्यसन, दुराचरण, जेल, दंड, कर्ज, व्यय, अपयश, धन हानि, शत्रुता, रोग, वृद्धावस्था, कोर्ट-कचहरी के केस, विदेश यात्रा आदि के बारे में विचार होता है.

भाव एवं राशि चक्र

  • ज्योतिष के अनुसार राशि-चक्र 360 अंश का होता है जो 12 भावों में विभाजित है। अर्थात एक भाव 30 अंश का होता है। कुंडली में पहला भाव लग्न भाव होता है उसके बाद शेष 11 भावों का अनुक्रम आता है। एक भाव संधि से दूसरी भाव संधि तक एक भाव होता है। अर्थात लग्न या प्रथम भाव जन्म के समय उदित राशि को माना जाता है।

भाव के प्रकार

  • केन्द्र भाव: वैदिक ज्योतिष में केन्द्र भाव को सबसे शुभ भाव माना जाता है। ज्योतिष के अनुसार यह लक्ष्मी जी की स्थान होता है। केन्द्र भाव में प्रथम भाव, चतुर्थ भाव, सप्तम भाव और दशम भाव आते हैं। शुभ भाव होने के साथ-साथ केन्द्र भाव जीवन के अधिकांश क्षेत्र को दायरे में लेता है। केन्द्र भाव में आने वाले सभी ग्रह कुंडली में बहुत ही मजबूत माने जाते हैं। इनमें दसवाँ भाव करियर और व्यवसाय का भाव होता है। जबकि सातवां भाव वैवाहिक जीवन को दर्शाता है और चौथा भाव माँ और आनंद का भाव है। वहीं प्रथम भाव व्यक्ति के स्वभाव को बताता है। यदि आपकी जन्म कुंडली में केन्द्र भाव मजबूत है तो आप जीवन के विभिन्न क्षेत्र में सफलता अर्जित करेंगे।
  • त्रिकोण भाव: वैदिक ज्योतिष में त्रिकोण भाव को भी शुभ माना जाता है। दरअसल त्रिकोण भाव में आने वाले भाव धर्म भाव कहलाते हैं। इनमें प्रथम, पंचम और नवम भाव आते हैं। प्रथम भाव स्वयं का भाव होता है। वहीं पंचम भाव जातक की कलात्मक शैली को दर्शाता है जबकि नवम भाव सामूहिकता का परिचय देता है। ये भाव जन्म कुंडली में को मजबूत बनाते हैं। त्रिकोण भाव बहुत ही पुण्य भाव होते हैं केन्द्र भाव से इनका संबंध राज योग को बनाता है। इन्हें केंद्र भाव का सहायक भाव माना जा सकता है। त्रिकोण भाव का संबंध अध्यात्म से है। नवम और पंचम भाव को विष्णु स्थान भी कहा जाता है।
  • उपचय भाव: कुंडली में तीसरा, छठवाँ, दसवाँ और ग्यारहवाँ भाव उपचय भाव कहलाते हैं। ज्योतिष में ऐसा माना जाता है कि ये भाव, भाव के कारकत्व में वृद्धि करते हैं। यदि इन भाव में अशुभ ग्रह मंगल, शनि, राहु और सूर्य विराजमान हों तो जातकों के लिए यह अच्छा माना जाता है। ये ग्रह इन भावों में नकारात्मक प्रभावों को कम करते हैं।
  • मोक्ष भाव: कुंडली में चतुर्थ, अष्टम और द्वादश भाव को मोक्ष भाव कहा जाता है। इन भावों का संबंध अध्यात्म जीवन से है। मोक्ष की प्राप्ति में इन भावों का महत्वपूर्ण योगदान होता है।
  • धर्म भाव: कुंडली में प्रथम, पंचम और नवम भाव को धर्म भाव कहते हैं। इन्हें विष्णु और लक्ष्मी जी का स्थान कहा जाता है।
  • अर्थ भाव: कुंडली में द्वितीय, षष्ठम एवं दशम भाव अर्थ भाव कहलाते हैं। यहाँ अर्थ का संबंध भौतिक और सांसारिक सुखों की प्राप्ति के लिए प्रयोग होने वाली पूँजी से है।
  • काम भाव: कुंडली में तीसरा, सातवां और ग्यारहवां भाव काम भाव कहलाता है। व्यक्ति जीवन के चार पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) में तीसरा पुरुषार्थ काम होता है।
  • दु:स्थान भाव: कुंडली में षष्ठम, अष्टम एवं द्वादश भाव को दुःस्थान भाव कहा जाता है। ये भाव व्यक्ति जीवन में संघर्ष, पीड़ा एवं बाधाओं को दर्शाते हैं।
  • मारक भाव: कुंडली में द्वितीय और सप्तम भाव मारक भाव कहलाते हैं। मारक भाव के कारण जातक अपने जीवन में धन संचय, अपने साथी की सहायता में अपनी ऊर्जा को ख़र्च करता है।

प्रत्येक भाव के स्वामी

वैदिक ज्योतिष के अनुसार, काल पुरुष कुंडली का प्रारंभ मेष राशि से होता है। यह स्वाभाविक रूप से वैदिक जन्म कुंडली होती है। काल पुरुष कुंडली में सात ग्रहों को कुंडली के विभिन्न भावों का स्वामित्व प्राप्त है:

  • मंगल: काल पुरुष कुंडली में मंगल ग्रह को कुंडली के प्रथम एवं अष्टम भाव का स्वामित्व प्राप्त है।
  • शुक्र: काल पुरुष कुंडली में शुक्र ग्रह दूसरे और सातवें भाव का स्वामी होता है।
  • बुध: काल पुरुष कुंडली में बुध ग्रह तीसरे एवं छठे भाव का स्वामी होता है।
  • चंद्रमा: काल पुरुष कुंडली के अनुसार चंद्र ग्रह केवल चतुर्थ भाव का स्वामी है।
  • सूर्य: काल पुरुष कुंडली में सूर्य को केवल पंचम भाव का स्वामित्व प्राप्त है।
  • बृहस्पति: काल पुरुष कुंडली में गुरु नवम और द्वादश भाव का स्वामी होता है।
  • शनि: काल पुरुष कुंडली में शनि ग्रह दशम एवं एकादश भाव के स्वामी हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Your Business Potential with Our Proven Strategies

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Ut elit tellus, luctus nec
ullamcorper mattis, pulvinar dapibus leo.

About Us

“Ignite your inner potential and transform challenges into stepping stones.

Contact Us

Join our newsletter to receive exclusive insights,
© 2024 All Rights Reserved Acharya Satvinder Design & Developed By AThink Media